दीवाली के लिए खरीदारी हो और दीये ही ना खरीदें जाएं…बात कुछ अजीब लगती है… लेकिन अब एसा ही हो रहा है। दीवाली के दिन दीयों की खरीदारी अब पहले की तरह नही होती। वजह कई हैं लेकिन ये वजह कितनी सही हैं,एक रिपोर्ट देखिए और सोचिए। मिट्टी के साथ मेहनत करके उसे अलग अलग सुंदर रूप देकर मिट्टी के ये दीये कुम्हार तैयार करते हैं इसके बाद इन्हें कई रंगों में रंगकर इनकी सुंदरता को और बढाया जाता है। करीब 2 महीने तक ये सारी मेहनत दीवाली के लिए की जाती है क्योंकि दीवाली में लोग अपने घरों में दीये जलाते हैं और घर को रोशन करते हैं,लेकिन इतनी मेहनत के बावजूद इन लोगों को अपनी मेहनत का वो फल नही मिलता जिसके ये हकदार हैं। कुम्हारों का कहना है कि दीवाली पर इनके दीये की जगह चाइनीज लाइटों और सजावटी मोमबती ने ले ली है। यहां घंटों मेहनत करने के बावजूद इन दीयों को सस्ते भाव में बेचकर रोजी रोटी का काम चलाना पड़ता है। मिट्टी के इन दीयों की खास बात ये है कि ये दीये हमारे देश के कलाकारों की कला को बढ़ावा और उन्हें रोजगार देते है,और तेल या मिट्टी के दीये जलाने से वातावरण भी शुद्ध होता है। एसे में अगर आप भी दीवाली की खरीदारी करते हुए मिट्टी की इन दीयों के भाव कम करवाने के लिए सोचें तो इन्हें तैयार करते वक्त होने वाली मेहनत औऱ इन दीयों के फायदे जरूर याद करना।

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